Friday 15 April 2016

मीडिया ट्रायल में शोध का महत्व

मीडिया एक ऐसा नाम जो किसी पहचान का मोहताज नही होता, इसकी ताकत को मापकर किसी ने इसे चौथे खम्भे की उपाधि से नवाजा तो वही किसी ने तमगा दिया समाज के आईने का ! एक ऐसा आईना जिसमे देखते ही देखते वक्त के बदलते हालात के साथ मीडिया के सारे सरोकार बदल कर रख दिए ! भूमंडलीकरण के अंधे दौर में मीडिया भी बाजार के साथ दो  दो हाथ करता नजर आया साम- दंड, भेद -भाव, पैसा, यह सब मीडिया के लिए अनैतिक होने के वजाय हालात का प्रतिक चिन्ह बन गए! जिसे समाज ने भी कबूलने में कोई हाजो -हिचल नही की! इस बदलते परिवेश की देंन रही की वक्त के बदलते पगडण्डीयों पर चलते  चलते मीडिया ने खबरों को वही पुराने मिजाज से दिखने के वजाय इस चटकारे मसाले में भुजना ही बेहतर जाना ! वर्तमान में तेजी से उभरती मीडिया ट्रायल की संकल्पना बहुत हद तक इसी की दें हैं! मीडिया ट्रायल को टीवी कवरेज मिलने के पीछे इसी बाजारवाद की दें रही ! संवेदनशील खबरों को ब्रकिंग व एक्सक्लूसिव के बैच में गढ़कर दर्शको के कमरे तक पहुचाया गया ! रहस्यमय हत्या की वारदाते, हाई प्रोफाइल, दम्पत्तियों की खबरे ,अभिनेता, राजनेता, इस मीडिया ट्रायल के प्यादे बने, जिसे मीडिया जब चाहे जिधर चाहे दौड़ा सकती थी ठीक वैसे ही जिस तरह किसी सतरंग की बाजी में प्यादे भागे फिरते हैं !

वख्त वाब्ख्त मीडिया ट्रायल को एक गुनहगार की तरह सवालो के कटघरे में खड़ा किया गया हैं ! कुछ हद तक इसकी दोषी खुद मीडिया हैं मगर ज्यादातर मामलों में राजनेता और व्यक्ति विशेष अपनी लुटती साख बचाने के लिए मीडिया ट्रायल को हमेशा हमेशा के लिए बंद करने को लेकर कई मर्तवा आदालत / कानून का दरवाजा बेवजह ही खटखटा चुके हैं! 2005 का प्रकरण ऐसे में याद होगा, जब 26 दिसम्बर 2005 को संसद में मीडिया ट्रायल को बंद करने की मांग को लेकर पुरे दिन बहस चली राजदीप सर देशाईने संसद में वक्तव्य दिया की कैमरा कभी झूठ नही बोलता “ ! ज्यादातर मामलों में मीडिया को यह आभाष हो जाता हैं की बिना आवाज़ उठाये इन खबरों पर सरकार कोई करवाई नही करेगी , वैसे ही मामले मीडिया ट्रायल के अंश बनते हैं ! जिसके बाद देश के कोने कोने से मीडिया ट्रायल को लेकर मीडिया को मिलते विशाल जनसमर्थन ने मीडिया ट्रायल के इस बिरोधी वर्ग के मंसूबो पर पानी फेर दिया ! आज मीडिया सवतंत्र हैं ठीक पहले की तरह किसी प्रकरण विशेष की मीडिया ट्रायल करने पर ! इस मद्देनजर नजर मीडिया ट्रायल में शोध का महत्व को व्याख्यायित किया जा रहा हैं ! प्रकरण के इकाईयों पर दोषारोपण:- मीडिया ट्रायल के जरिये मीडिया न्यायालय के बिचाराधीन किसी प्रकरण के होते हुए भी नयायपालिका के फैसले से पूर्व ही अपना फैसला अपने कार्यक्रमों, बहस और खबरों जरिये तय कर देती है ! जिससे इकाईयों की मर्यादा धूमिल होती है ! सामाजिक प्रतिष्ठा गिरती है! मीडिया एक लम्बे समय से ऐसा करती रही है! मीडिया शोध इसके पीछे की हकीकत जानने की कोशिश करता है ! मीडिया ट्रायल की प्रासंगिकता:- मीडिया में जिन खबरों पर ट्रायल चलाया जा रहा है ! उनकी अनिवार्यता , प्रासंगिकता कितनी है, किस प्रकार के खबरों को मीडिया ज्यादा वरीयता दे रही है ! इन खबरों को साल में, माह में, सप्ताह में कितने घंटे कबरेज दिया जा रहा है ! कितनी बार ऐसी खबरे मीडिया की हैडलाइन बनी है ! इस दौरान मीडिया को मिलने वाले विज्ञापन की संख्या क्या है! मीडिया में मीडिया ट्रायल का इकाई बने इन खबरों को क्या इतना तबज्जो देना सही है ! शोध इन कारको व कारणों को जानने की कोशिश करता है ! मीडिया ट्रायल का स्वरूप:- मीडिया ट्रायल में जिन खबरों पर मीडिया ट्रायल चलाया जा रहा है ! या चलाया गया है ! इस पहलू की जाँच शोध के माध्यम से की जाती है ! मीडिया में जिन खबरों पर मीडिया ट्रायल चला है उनका स्वरूप कैसा है ! क्या उनमे सनसनी मचने जैसी घटनाये जैसे;- हत्याकांड, प्रधानमंत्री पर लगे घोटाले का आरोप या किसी मंत्री या अनैतिक खबरों को ही उठाया गया है ! यह मीडिया ट्रायल शोध के जरिये ही पता लगाया जाता है ! किन खबरों पर मीडिया ट्रायल की जरूरत:- मीडिया ट्रायल के मापदंड पर जिन खबरों को रखा गया है क्या वे इन मापदंडो पर खरे उतारते है ! कृषि, शहर की समस्या, नक्सलवाद, आतंकवाद, शिक्षा, नारी सशक्तिकरण ,बिजली, भ्रष्टाचार, विकास जैसे मुददों को क्या मीडिया ट्रायल में शामिल किया गया या इन्हें मीडिया ने हासिये पर रखा है ! क्या जिन खबरों में मीडिया ज्यादा मसाला लगा सकती है सिर्फ उन प्रकरणों को मीडिया ट्रायल के रूप में प्रस्तुति दी गयी ! मीडिया शोध इकाईयों का अन्वेषण करती है ! समस्याओ का निदान:- मीडिया ट्रायल के समस्याओ के निदान में शोध बेहद महत्वपूर्ण रोल अदा कर रहा है ! बर्तमान परिदृश्य में मीडिया ट्रायल को बेबुनियाद बताकर समाज के एक विशेष तबके ने मीडिया ट्रायल पर रोक लगाने की मांग न्यायालय में उठाई! यह मामला सन 2005 में संसद में भी पुरे दिन गूंजा मगर मीडिया के साथ इस समय भारत का विशाल जनसमर्थन खरा था जिसका परिणाम रहा की आज तक मीडिया ट्रायल बिना किसी रोक टोक के जरूरत भरी खबरों पर चलाया जा रहा है ! केस स्टडी:- मीडिया जिन खबरों पर मीडिया ट्रायल चला रही है या अब तक जिन खबरों को मीडिया ट्रायल के जरिये चलाया जा रहा है ! मीडिया ट्रायल के अंतर्गत शोध यह जाँच करती है! मीडिया में किन खबरों पर मीडिया ट्रायल चलाना अनिवार्य है ! किन खबरों को टी आर पि की होड़ में मीडिया ट्रायल का रूप दिया गया! क्या न्यूज़ चैनल या समाचार पत्रिका एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ में किसी खबर का मीडिया ट्रायल बेबुनियादी तौर पर कर रहे है ! मीडिया ट्रायल में किये जाने वाले शोध के अंतर्गत इन बिन्दुओ का ही तलाश करते है ! अन्वेषण:- मीडिया में किस तरह के खबरों पर ज्यदाकर मीडिया ट्रायल अब तक चले है ! क्या इनका सामाजिक सरोकार से कोई वास्ता है ! यदि है तो किस हद तक है ! किस भौगलिक क्षेत्र किस प्रकार की खबरों पर मीडिया ट्रेल ज्यादा चलाये जा रहे है या गए है ! क्या मीडिया ट्रायल सिर्फ व्यक्ति विशेष , सनसनीखेज खबरों , व्यक्ति विशेष के पर्सनल अफेयर्स पर चलाये जा रहे है! सामाजिक सरोकार , आम जन की आबाज की खबरों को भी मीडिया ट्रायल के जरिये सरकार या शासन तक पहुचाया गया है ! न्यायपालिका पर दबाव :- मीडिया ट्रेल को लेकर अक्सर ये विवाद आम रही की मीडिया ट्रायल ने न्यायपालिका में लंबित मामलो पर दवाव बनाने का कार्य किया है ! शोध के जरिये इस अवधारणा की जाँच की जाती है ! इसकी सत्यता की माप की जाती है ! शासन, प्रशासन के कार्यकरण में रुकावट :- मीडिया ट्रायल के ज्यादातर मामलो को लेकर शासन प्रशासन की यह आरोप रहा है की मीडिया ट्रायल शासन और प्रशासन पर प्रेसर ग्रुप का निर्माण करती है ! मीडिया ट्रायल शोध में इन तमाम इकाईयों की जाँच पडताल बारीकी से किया जाता है ! मनी मेकिंग गन:- मीडिया पर अक्सर ही एक लम्बे समय से ही मीडिया ट्रेल के मामलो को लेकर मनी मेकिंग गन होने का आरोप लगाया जाता रहा है ! इस आरोप की जाँच शोध के जरिये ही की जा सकती है ! इनमें कितनी सत्यता है ! ऐसे कई सारे इकाईयों की जाँच मीडिया ट्रायल पर किये जा रहे शोध के जरिये लगे जा सकता है ! शब्दों या वाक्यों का प्रयोग:- मीडिया जिस प्रकरण पर मीडिया ट्रायल चला रही है ! उन में किस तरह के शब्दों, वाक्यों ,विशेषणों का प्रयोग किया जा रहा है ! क्या ऐसे मामलो को मीडिया गंभीरता से ले रही है! क्या ऐसे मामलो के प्रयोग में प्रेस कोंसिल या बी० बी० सी० के रिपोर्टिंग शब्दावलियो या संहिताओ का ध्यान रख रही है ! यदि रख रही है तो किस हद तक !क्या मिथ्या, लंछावान, अमर्यादित, या धूमिल करने वाले ग्राफ़िक्स संकेतो के द्वारा प्रकरण की इकाईयों को प्रभावित किया जा रहा है ! मीडिया शोध इन तमाम बिन्दुओ की करी दर करी परताल करती है ! टी आर पी का हथकंडा:- मीडिया ट्रायल पर किये जाने वाले शोध में यह भी अन्वेषित करने की कोशिश की जाती है किन की क्या मीडिया ट्रायल के बढ़ते मामलो के पीछे मीडिया को अन्य खबरों से अधिक मीडिया ट्रायल को मिलती लोकप्रियता है ! क्या टी आर पि की बजह से मीडिया ट्रायल को मीडिया संसथान इतना तूल दे रहे है ! इन इकाईयों की जांच शोध की मदद से की जाती है ! लोकप्रियता जुटाने का हथियार:- मीडिया ट्रायललोकप्रियता जुटाने का एक हथियार है जैसा की समाज का एक सुक्ष्म वर्ग ये आरोप लगता रहा है मगर यह बात कितनी बुनियादी है ! मीडिया ट्रायल पर किये जाने वाला शोध इस इकाई की पडताल करता है !


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